अंहद में नाद
नाद से अंहद
मुर्गी से अंडा
जू अंडे से मुर्गी,.
अंहद बिच ब्रह्मांड,..
फिरे जु अनजान,.
भीतर भीड़
फिर भी नादान
अण्डकोष से आरम्भ,
ब्रह्मरंध्र में आराम...
मौन से नाड सुने
नाद हो गुंजायमान
उसकी अंग तरंगी
फिर भी हैं अनजान....
न भीतर न बाहर
वो छलावा सा बादल
अंहद को हद करता
हद को पार न दरता
पागल में मुस्काता
यू न पार हम पाता
जो कहै मिल गया
उसे दे भटकता......
अंहद सफर
न कोई गाड़ी
बन मौन ही ले जाता
मौन मन रँगा
बजा डंका
अंहद उतर......
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