विचार अपने अपने
सबकी अपनी सिख,...
कोई बैठा हैं किनारे
कोई कूदा समंदर बीच,..
कोई मांगे भीख कटोरा
कोई लेवै खेत को सींच,..
जैसी खोदी बावड़ी
हरिहर वैसा पानी बीच,..
राम नाम का आसरा,..
न किसी से हमको रिस
विचार अपने अपने
सबकी अपनी अपनी सिख,..
जिसका हो मन,लो
न मन,अपना कर लो,..
नीर हमारा नमक भरा
न मीठै की आस,..
इतना हमको हैं काफ़ी
राम ने जितनी दी सांस्,..
अपना अंहद अंतहीन
न काहू का ठोर
खुले नैन से चले सनेमा,..
हम कब होवै बोर,..
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