आप ही करणी
आप ही भरणी
आप मे
आप ही समाया
सब जानत
दूध मे घी
घी घर्षण से आया........
सूरज तपता
पर न जलता
बाप को बाप बताया
लटू सी हरिहर
घूमे धरती
किसी को
न गिरते पाया..........
हिम् पिघले
बनता पानी
पानी हिम् बनाया
मुर्गी से अंडा
अंड से मुर्गी
अहम जन्म हैं पाया........
मैं ही करता
मैं ही भरता
वहम तुझे
नजर न वो आया
मर्ग कस्तूरी
माया पुरी
कोई पकड़ न पाया........
चोरी करता
उपवन भँवरा
क्या आपने कुछ
काम हैं आया
हाथ हथेली
दोनों खाली
मर कर तू पछतायो.......
रोज सवेरे
गुण गुण करता,
पर तु न सुन पायो
अंत काल
सब छोड़ो
पर तु न गुण पायो.......
आंख खुली तै
देख अंधेरी
क्यो जी मच लायो
हंस उड़ गया
पंख पसारे
काम नही
कुछ आयो........
मैं मैं तेरी
यही धरि हैं
संग सांस भी
न जा पायो
आप ही करणी
आप ही भरनी.........
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