Wednesday, 15 January 2020

राह पकड़ो मन्जिल की

चलो राह पकड़ो
मंजिल की तलाश में,...
चाह हैं मंजिल की तो
हमसफ़र क्या करने,..
मौन के निर्माण में,..
शोर का निर्वाण कर,..
किसी से भेद क्यू
पर न किसी अपमान कर
जंगलों की आग से 
क्या डरना तुझे,...
बस मैं की वासना से
 हरिहर दूर रह.....
चलो राह पकड़ो 
मंजिल की तलाश में,..
बूत परस्त हैं तो क्या
विश्वास से वास कर,..
मौन से नाता तेरा
मौन से सांस धर,..

Monday, 13 January 2020

अपना अंहद अंतहीन

विचार अपने अपने
सबकी अपनी सिख,...
कोई बैठा हैं किनारे
कोई कूदा समंदर बीच,..
कोई मांगे भीख कटोरा
कोई लेवै खेत को सींच,..
जैसी खोदी बावड़ी
हरिहर वैसा पानी बीच,..
 राम नाम का आसरा,..
न किसी से हमको रिस
विचार अपने अपने
सबकी अपनी अपनी सिख,..
जिसका हो मन,लो
न मन,अपना कर लो,..
नीर हमारा नमक भरा
न मीठै की आस,..
इतना हमको हैं काफ़ी
राम ने जितनी दी सांस्,..
अपना अंहद अंतहीन
न काहू का  ठोर 
खुले नैन से चले सनेमा,..
हम कब होवै बोर,..

Saturday, 11 January 2020

जग के तुफानो में

जग के तुफानो में
मजबूत पेड़ भी उखड़ते,..
फिर अंकुरित हो जड़ो से,
 नये तनै बनते है,...
मिट जाती हैं जल कि धारा
जो कल कल कर बहती,..
सूर्य ऊष्मा से हो वाष्पीकरण,..
बादल के संग 
फिर वर्ष बन बहती है
ये जींवन की धारा हैं
मिटती बनती रहती हैं
इसी चक्र को दुनिया
माया माया कहती हैं 
वो काल नैत्र अंधा,...
हरिहर बिन समझे ही 
मर जाता है,..
मिटने वाली चीजों
को अपना माल बताता है
वो पगला क्या जाने
सुखी रेत को जग मे
यहा कौन बांध पाता हैं
अन्त काल मे,..
मन का पँछी भी 
बिन कहै ही 
उड़ जाता हैं
रोज़ सवेरे उठते है
वो तुझको 
आयना दिखलाता हैं
नाजाने कब
बचपन पर बुढापा
सा छा जाता हैं

कायरो के लिये कोई जमीन नजी होती

कायरो के लिये 
कोई ज़मीन नही होती,..?
न कायरो कही इज्ज़त,..
अहिंसा परमो धर्म,
सच है पर है 
परलोक मे,..
जो हाथ पसारे
तो दूध पिला,..
जो भाषा शास्त्र की
समझे वही समझा
जो बात मिटाने की करे
तो शस्त्र उठा,..
तू कायर की सन्तान नही
तू अपना धर्म निभा,..
वो सोये शेर को छेड़ रहा
तू अपना पराक्रम दिखा,..

क्या घण्टे मंजीरे

क्या घण्टे मंजीरे
बजाते रह जाओगे,..?
या धर्म रक्षा को
कभी शस्त्र भी उठाओगे,
राम कथा हो या कृष्ण कथा
तू उनका सार बता
आज के रावण,कंस के वध को
तू भी कदम उठा,..
नही मिटेगी हस्ती तेरी
तू ये ख़्वाब भूल जा,..
सच जानने की इच्छा है..?
तो तू इतिहास उठा,..
सुकड़ कर रह गया
हरिहर देश तेरा
जो बचा उसे बचा,..

ठगना काम ठग का

ठगना काम ठग का
क्यू फिर ठगता हैं संसार,..
दो पल की जिंदगी
सात जन्म का व्यापार,..
सात जन्म का व्यापार,........
पर झूठे सब अधिकार,..
हरिहर सब जाने 
फिर कौन करे स्वीकार,..
न तेरा न मेरा ये संसार

मैं न बदला

मैं न बदला 
हज़ार कोशिशों के बाद...
मैं इंसान होता
 तो बदलता,..
तेरे विचारों से उतपन्न
मै भाव हूं
मैं कहा मरा,.
करता स्थान परिवर्तन,..
आत्मा मरकर
देह बदले
मैं बदलता
विचार परिवर्तन,..
मैं नही अकेला,..
सब मेरे साथी
सहजता से 
मुझ बिन किसी को 
नींद न आती
मैं हर जीव का साथी
मैं मरता 
तो दुनिया ही
स्वर्ग न हों जाती ?

आजाद परिंदे कहते है

आज़ाद परिंदे कहते है
दीवारों से डरना क्या,.
इक दिन तो गिरना हैं
रोज़ रोज़ का मरना क्या,..१
हम इंसा जैसे नही
जो व्यर्थ बन्धनों में रहता,.
डरा डरा सा रहने वाला....२
खुद को ख़ुदा वो कहता है
तुम क्या जानो इंसानों
आज़ादी किसको कहते है,..
जो खुद ही अविश्वासी
मन मरे घरो में रहते है...३
पावो में बन्धनों की बेड़ियां
घुटन की साँसों को
आजादी वो कहते है
हम आज़ाद परिंदे
नील गगन में उड़ते है.....४
नही इंसानो जैसे
मन ग़ुबार हवा लिये
कायरों से फिरते है
क़ायनात की मर्यादाओं 
का हम दिल से मान धरे,..५
तुम इंसान हर पल
क़ायनात की मर्यादाओं
का क़त्ल करे...६
हम आजाद परिंदे
आज़ादी का सम्मान करें
मिलकर हम परिंदे
 नील गगन नाप धरै...

आओ नया गुलिस्तां तैयार करें

आओ स्वीकार करे
ये फ़िजा हमारी हैं,..
इससे भी प्यार करे
महज़ दो पल के लिये
क्या फूलो को मसलना,..
बस दूर से निहारै 
अबोध बालक की तरह
आ नया गुलसिताँ तैयार करें,...
किसी को मिटाना साहब
हमारी रिवायत नही,...
बिना अपराध का जहाँ तैयार करें,..
आओ स्वीकार करें
ये फ़िजा हमारी हैं
इससे भी प्यार करे
समझ के कागज़ के घरौंदों में हैं
सिसकती जिंदगीया,.
आ सर्द रातो में किसी को
घर से न दर किनार करे,..
माना अमिट हैं कहानी तेरी
कोशिश तो कर,..
तेरी किसी बदनाम 
कहानी को कोई न याद करे

अंहद मे नाद

अंहद में नाद 
नाद से अंहद
मुर्गी से अंडा
जू अंडे से मुर्गी,.
अंहद बिच ब्रह्मांड,..
फिरे जु अनजान,.
भीतर भीड़
फिर भी नादान
अण्डकोष से आरम्भ,
ब्रह्मरंध्र में आराम...
मौन से नाड सुने
नाद हो गुंजायमान
उसकी अंग तरंगी 
फिर भी हैं अनजान....
न भीतर न बाहर
वो छलावा सा बादल
अंहद को हद करता
हद को पार न दरता
पागल में मुस्काता
यू न पार हम पाता
जो कहै मिल गया
उसे दे भटकता......
अंहद सफर 
न कोई गाड़ी
बन मौन ही ले जाता
मौन मन रँगा
बजा डंका
अंहद उतर......

आप ही करणी

आप ही करणी
आप ही भरणी
आप मे 
आप ही समाया
सब जानत
दूध मे घी
घी घर्षण से आया........
सूरज तपता
पर न जलता
बाप को बाप बताया
लटू सी हरिहर
घूमे धरती 
किसी को 
न गिरते पाया..........
हिम् पिघले
बनता पानी
पानी हिम् बनाया
मुर्गी से अंडा
अंड से मुर्गी
अहम जन्म हैं पाया........
मैं ही करता
मैं ही भरता
वहम तुझे 
नजर न वो आया
मर्ग कस्तूरी
माया पुरी
कोई पकड़ न पाया........
चोरी करता 
उपवन भँवरा
क्या आपने कुछ
काम हैं आया
हाथ हथेली
दोनों खाली
मर कर तू पछतायो.......
रोज सवेरे
गुण गुण करता,
पर तु न सुन पायो
अंत काल 
सब छोड़ो
पर तु न गुण पायो.......
आंख खुली तै
देख अंधेरी
क्यो जी मच लायो
हंस उड़ गया
पंख पसारे
काम नही 
कुछ आयो........
मैं मैं तेरी
यही धरि हैं
संग सांस भी
न जा पायो
आप ही करणी
आप ही भरनी.........