मैं फ़क़ीर
बिना फ़र्क वाला,..
खुला घर,मन
न कोई चाबी ताला,...
है अम्बर न आडम्बर
न आसन चाँदी वाला
मैं फ़क़ीर
बिना फर्क वाला,..
है बस काया
न कोई माया,..
न घर महल
अटारी वाला,...
मैं फ़क़ीर
न फर्क वाला,..
एक लँगोटी,..
सुखी रोटी
न कुनबा पैसे वाला,..
न चमचा न थाली
न कुतो की रखवाली
मैं फ़क़ीर.....
न फर्क वाला
मिट्टी काआंगन
धूल बिछोना
नीद आई तो
धरती पर सोना,..
मैं फ़क़ीर
न फर्क वाला......
न बाल बढ़ाये
न तिलक लगाये
माथा झुर्रियों वाला,..
न माल बनाये
न नाम कमाये
बस हरि नाम
को भजन वाला,..
मैं फ़क़ीर
न फ़र्क वाला,..
न घर जोड़ा
न किसी का तोड़ा
न वहम पालने वाला
न पलै कौड़ी,..
हरिहर माया जोड़ी
न गठरी माया वाली
मैं फ़क़ीर
न फर्क वाला,..
न कोई पूछे
न पूछ हमारी,..
न चिंता हैं मलवाली,..
न चेला चेली,..
न भीड़ की रखवाली,..
मैं फ़कीर
बिना फर्क वाला,...
न माथे ताज
न कि आस,..
न है फ़र्क ही पड़ने वाला
भोला भंडारी
न भांग ही चखने वाला
मैं फ़क़ीर
बिना फर्क वाला
न माँगा
न मांग हमारी,..
बस बहना नदिया सा
मैं फकीर
मैं फ़क़ीर
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