Tuesday, 20 August 2024

मै नाच नचाता हू

पहले मैं खिलाता हूं 
फिर खेल खिलाता हू 
फिर खिलखिलाता हूं 
फिर मैं रूठ जाता हूं 
कुछ को समझ आता हू
बहुत को नही, 
समझ मै आता हू
जिन्हे अपना बनाना हो
हरिहर उन्हें दुनिया के रंग 
दिखाता हूं 
कभी पास बुलाता हू 
कभी खुद दूर हो जाता हूं 
कम जो प्यारे है उन्हें 
मदारी बनाता हु
जिन्हे रखना हो अंगसंग
उन्हें दर्द के नाच नचाता हूं 
एक एक सब नाते
उनके दूर भगाता हूं 
रह सकू अकेला 
मैं मन में मंदिर बनाता हु
सहज तो हू मै, छलिया 
पर पूर्ण को कठिन हो जाता हूं 
गर है हिम्मत सब खोने की
तो ही हाथ बढ़ा 
वरना सहज जी,
गर्त गली में जा

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