प्रेम की क्या होती हैं
आ हम बताए
क्यू राम दर्शन को
शबरी रोती है
क्यू राधा मीरा
शाम की बावरी होती है
हम दिखाएंगे पराकाष्ठा
प्रेम की क्या होती है
कुछ पाने को फिरने वाली
दुनिया झूठा रोती है
प्रेम प्याला विष का
क्यू मीरा पी जाती है
यू ही नहीं दुनिया गुण
प्रेम का गाती है
प्रेम है पुजा प्रेम तमस्या
प्रेम बिना नहीं
कोई काम दूजा
हम दिखाएंगे पराकाष्ठा
प्रेम की क्या होती
भूल जाना पा जाना
ये प्रेम नहीं होता
उसे नहीं मिलता
जो बावरा नहीं होता
हम जन्मजात बावरे
परम प्रेम को पाएंगे
या जीते जी
तुझमें शामिल होंगे शिवी
या तन श्मशान भस्म
हरिहर बन जाएंगे
पर चिंता न कर हम
प्रेम पराकाष्ठा
खुद बन जाएंगे
शिवी,रूह में जो समाता
फिर कौन जुदा कर पाता
शिव ही समझाता
शिव पराकाष्ठा है
मै तो ये जान गया
देखे कौन तुम्हे समझता