Tuesday, 24 December 2024

हम दिखाएंगे पराकाष्ठा


हम दिखाएंगे पराकाष्ठा 
प्रेम की क्या होती हैं 
आ हम बताए
क्यू राम दर्शन को
शबरी रोती है
क्यू राधा मीरा 
शाम की बावरी होती है
हम दिखाएंगे पराकाष्ठा 
प्रेम की क्या होती है
कुछ पाने को फिरने वाली
दुनिया झूठा रोती है
प्रेम प्याला विष का 
क्यू मीरा पी जाती है
यू ही नहीं दुनिया गुण
प्रेम का गाती है
प्रेम है पुजा प्रेम तमस्या
प्रेम बिना नहीं 
कोई काम दूजा
हम दिखाएंगे पराकाष्ठा 
प्रेम की क्या होती
भूल जाना पा जाना
ये प्रेम नहीं होता
उसे नहीं मिलता
जो बावरा नहीं होता
हम जन्मजात बावरे 
परम प्रेम को पाएंगे
या जीते जी 
तुझमें शामिल होंगे शिवी
या तन श्मशान भस्म
हरिहर बन जाएंगे
पर चिंता न कर हम 
प्रेम पराकाष्ठा 
खुद बन जाएंगे 
शिवी,रूह में जो समाता 
फिर कौन जुदा कर पाता 
शिव ही समझाता 
शिव पराकाष्ठा है 
मै तो ये जान गया
देखे कौन तुम्हे समझता

Thursday, 22 August 2024

दायरे मे लाता है वो

बड़े सौदागर है 
आज के लोग
झट से तोल देते है
किरदार किसी का,..
कोन है जिस्म,
जिसमे कमी न हो
तू ही बता
किसे पूर्ण किया है रब ने...
पहिया समय का ,हरिहर 
यू ही चलाता है वो
किसी को ताज,
किसी को टाट 
दिला ता है हो
न बन तू सौदागर बड़ा,
बड़े बड़ो को,
बर्फ में लगता है वो,..
जो जो सिकंदर बना
भुला है औकात ए दायरा,
सब दायरे मे लाता है वो,

Tuesday, 20 August 2024

मै नाच नचाता हू

पहले मैं खिलाता हूं 
फिर खेल खिलाता हू 
फिर खिलखिलाता हूं 
फिर मैं रूठ जाता हूं 
कुछ को समझ आता हू
बहुत को नही, 
समझ मै आता हू
जिन्हे अपना बनाना हो
हरिहर उन्हें दुनिया के रंग 
दिखाता हूं 
कभी पास बुलाता हू 
कभी खुद दूर हो जाता हूं 
कम जो प्यारे है उन्हें 
मदारी बनाता हु
जिन्हे रखना हो अंगसंग
उन्हें दर्द के नाच नचाता हूं 
एक एक सब नाते
उनके दूर भगाता हूं 
रह सकू अकेला 
मैं मन में मंदिर बनाता हु
सहज तो हू मै, छलिया 
पर पूर्ण को कठिन हो जाता हूं 
गर है हिम्मत सब खोने की
तो ही हाथ बढ़ा 
वरना सहज जी,
गर्त गली में जा