Sunday, 5 May 2019

समाज आज

ख्वाबो मे न खो
टूट जायेंगे,
जो अपने हैं ख़ास
रूठ जायेगे,
यही तो जिंदगी हैं साहब,
गैरों से क्या डरना,
मौका मिला तो अपने
ही लूट जायेंगे,
बाड़ ही कमजोर हो तो,
फ़सल नाश होती हैं
जो बनाते हैं कम्बल,
सर्द उनकी ही राते होती हैं
माँ को खबर ही नही
बच्चे बड़े हो गये,
पड़ी अनाथ आश्रम मे
वो चुपके चुपके रोती हैं